MAA GANGA का जन्म कब मनाया जाता है।
MAA GANGA का जन्म वैशाख शुक्ल सप्तमी तिथि के दिन माना जाता है। पुराणों में देवी गंगा के जन्म कई कथाएं मिलती हैं। साथ ही इनमें गंगा के स्वर्ग से पृथ्वी पर आने का रहस्य भी बताया गया है। यही नहीं देवी गंगा के मनुष्य रूप में प्रेम की भी अत्यंत रोचक कथा मिलती है। जो यह दर्शाती है कि गंगा की अविरल धार न केवल तन-मन को पवित्र करती है बल्कि यह प्रेम का संचार भी करती है। तो आइए जानते हैं क्या है MAA GANGA के जन्म की कथा और कैसे हुआ इनका मनुष्य से विवाह? MAA GANGA
श्रीहरि से जानें देवी गंगा का नाता
MAA GANGA वामन पुराण के अनुसार जब भगवान विष्णु ने वामन रूप में अपना एक पैर आकाश की ओर उठाया तो तब ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु के चरण धोकर जल को अपने कमंडल में भर लिया। इस जल के तेज से ब्रह्मा जी के कमंडल में गंगा का जन्म हुआ। ब्रह्मा जी ने गंगा हिमालय को सौंप दिया इस तरह देवी पार्वती और गंगा दोनों बहन हुई। इसी में एक कथा यह भी है कि वामन के पैर के चोट से आकाश में छेद हो गया और तीन धारा फूट पड़ी। एक धारा पृथ्वी पर, एक स्वर्ग में और एक पाताल में चली गई और गंगा त्रिपथगा कहलाईं। MAA GANGA
MAA GANGA को जब हुआ भोलेशंकर से प्रेम
शिव पुराण में ऐसी कथा मिलती है कि गंगा भी देवी पार्वती की तरह भगवान शिव को पति रूप में पाना चाहती थी। देवी पार्वती नहीं चाहती थी कि गंगा उनकी सौतन बने। फिर भी गंगा ने भगवान शिव की घोर तपस्या की। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इन्हें अपने साथ रखने का वरदान दे दिया। इसी वरदान के कारण जब गंगा धरती पर अपने पूरे वेग के साथ उतरी तो जल प्रलय से धरती को बचाने के लिए भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में लपेट लेते हैं, इस तरह गंगा को भगवान शिव का साथ मिल जाता है।
यह भी पढ़े : तीर्थ नगरी हरिद्वार में 4 नवंबर को होगा गंगा उत्सव का भव्य आयोजन
यहां MAA GANGA को मानते हैं शिवजी की दूसरी पत्नी
मराठी लोक कथाओं में भी इसी तरह की कुछ बातें मिलती हैं। यहां गंगा को भगवान शिव की दूसरी पत्नी बताया जाता है। पार्वती गंगा को परेशान करती है जिसकी शिकायत गंगा भगवान शिव से करती हैं। पार्वती के कोप से गंगा की रक्षा के लिए भगवान शिव उन्हें अपनी जटाओं में छुपा लेते हैं। गंगा के जन्म और नदी रूप में प्रकट होने की जिस तरह अनेकों कहानियां हैं उसी प्रकार इनके मानव रूप में प्रेम की भी कई कथाएं हैं।
तब ऐसे हुआ MAA GANGA का मनुष्य से विवाह
ब्रह्मा जी के श्राप के कारण गंगा नदी रूप में धरती पर आईं और दूसरी ओर महाभिष को हस्तिनापुर के राजा शांतनु के रूप में जन्म लेना पड़ा। एक बार शिकार खेलते हुए शांतनु जब गंगा तट पर पहुंचे तो गंगा मानवी रूप धारण कर शांतनु के पास आईं और दोनों में प्रेम हो गया।
शांतनु और गंगा की आठ संतानें हुई जिनमें सात को गंगा ने अपने हाथों से जल समाधि दे दी और आठवीं संतान के रूप में देवव्रत भीष्म का जन्म हुआ। लेकिन देवव्रत को गंगा जलसमाधि नहीं दे पाईं। कहते हैं कि गांगा के आठों संतान वसु थे जिन्हें श्राप मुक्त करने के लिए गंगा उन्हें जल समाधि दे रही थी। लेकिन आठवीं संतान को श्राप मुक्त कराने में गंगा असफल रही।
MAA GANGA के प्रेम की यह भी अनूठी कथा
महाभारत की कथा के अनुसार देवी गंगा अपने पिता ब्रह्मा के साथ एक बार देवराज इंद्र की सभा में आईं। यहां पर पृथ्वी के महाप्रतापी राजा महाभिष भी मौजूद थे। महाभिष को देखकर गंगा मोहित हो गईं और महाभिष भी गंगा को देखकर सुध-बुध खो बैठे। इंद्र की सभा में नृत्य चल रहा था तभी हवा के झोंके से गंगा का आंचल कंधे से गिर गया।
सभा में मौजूद सभी देवी-देवताओं ने शिष्टाचार के तौर पर अपनी आंखें झुका ली लेकिन गंगा में खोए महाभिष उन्हें एकटक निहारते रह गए और गंगा भी उन्हें देखती रह गई। क्रोधित होकर ब्रह्मा जी ने शाप दिया कि आप दोनों लोक-लाज और मर्यादा को भूल गए हैं इसलिए आपको धरती पर जाना होगा। और आप दोनों एक दूसरे को पसंद करते हैं इसलिए वहीं आपका मिलन होगा।